आज सोचा कि कुछ मंदिर लिखूँ,
आज सोचा कि कुछ मस्जिद लिखूँ |
राम को याद करते हुए कुछ लिखूँ,
अल्लाह को सलाम करते हुए कुछ लिखूँ |
खुद के धर्म को याद करूँ और कुछ लिखूँ,
कुछ को बदनाम करूँ और कुछ लिखूं |
रात पहर तक लिख न पाया सचमुच ऐसा कुछ,
क्यूंकि मेरी कलम नास्तिक हो चुकी है |
मेरी यह कविता आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रही है | आपके दो शब्द मेरी कलम के लिये स्याही समान जरूरी हैं | मेरा ईमेल pravincroy@gmail.com आपका प्रवीण
आज सोचा कि कुछ मस्जिद लिखूँ |
राम को याद करते हुए कुछ लिखूँ,
अल्लाह को सलाम करते हुए कुछ लिखूँ |
खुद के धर्म को याद करूँ और कुछ लिखूँ,
कुछ को बदनाम करूँ और कुछ लिखूं |
रात पहर तक लिख न पाया सचमुच ऐसा कुछ,
क्यूंकि मेरी कलम नास्तिक हो चुकी है |
मेरी यह कविता आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रही है | आपके दो शब्द मेरी कलम के लिये स्याही समान जरूरी हैं | मेरा ईमेल pravincroy@gmail.com आपका प्रवीण